Namokar Chalisa Lyrics in Hindi |
वंदूँ श्रीअरिहंत पद, सिद्ध नाम सुखकार। |
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सूरी पाठक साधुगण, हैं जग के आधार ।।१।। |
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इन पाँचों परमेष्ठि से, सहित मूल यह मंत्र। |
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अपराजित व अनादि है, णमोकार शुभ मंत्र ।।२।। |
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णमोकार महामंत्र को, नमन करूँ शतबार। |
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चालीसा पढ़कर लहूँ, स्वात्मधाम साकार ।।३।। |
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चौपाई |
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हो जैवन्त अनादिमंत्रम्, णमोकार अपराजित मंत्रम् ।।१।। |
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पंच पदों से युक्त सुयंत्रम्, सर्वमनोरथ सिद्धि सुतंत्रम् ।।२।। |
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पैंतिस अक्षर माने इसमें, अट्ठावन मात्राएँ भी हैं ।।३।। |
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अतिशयकारी मंत्र जगत में, सब मंगल में कहा प्रथम है ।।४।। |
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जिसने इसका ध्यान लगाया, मनमन्दिर में इसे बिठाया ।।५।। |
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उसका बेड़ा पार हो गया, भवदधि से उद्धार हो गया ।।६।। |
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अंजन बना निरन्जन क्षण में, शूली बदली सिंहासन में ।।७।। |
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नाग बना फूलों की माला, हो गई शीतल अग्नी ज्वाला ।।८।। |
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जीवन्धर से इसी मंत्र को, सुना श्वान ने मरणासन्न हो ।।९।। |
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शांतभाव से काया तजकर, पाया पद यक्षेन्द्र हुआ तब ।।१०।। |
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एक बैल ने मंत्र सुना था, राजघराने में जन्मा था |।११।। |
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जातिस्मरण हुआ जब उसको, उसने खोजा उपकारी को ।।१२।। |
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पद्मरुची को गले लगाया, आगे मैत्री भाव निभाया ।।१३।। |
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कालान्तर में वही पद्मरुचि, राम बने तब बहुत धर्मरुचि ।।१४।। |
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बैल बना सुग्रीव बन्धुवर! दोनों के सम्बन्ध मित्रवर ।।१५।। |
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रामायण की सत्य कथा है, णमोकार से मिटी व्यथा है ।।१६।। |
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ऐसी ही कितनी घटनाएँ, नए पुराने ग्रन्थ बताएँ ।।१७।। |
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इसीलिए इस मंत्र की महिमा, कही सभी ने इसकी गरिमा ।।१८।। |
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हो अपवित्र पवित्र दशा में, सदा करें संस्मरण हृदय में ।।१९।। |
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जपें शुद्धतन से जो माला, वे पाते हैं सौख्य निराला ।।२०।। |
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अन्तर्मन पावन होता है, बाहर का अघमल धोता है ।।२१।। |
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णमोकार के पैंतिस व्रत हैं, श्रावक करते श्रद्धायुत हैं ।।२२।। |
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हर घर के दरवाजे पर तुम, महामंत्र को लिखो जैनगण ।।२३।। |
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जैनी संस्कृति दर्शाएगा, सुख समृद्धि भी दिलवाएगा ।।२४।। |
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एक तराजू के पलड़े पर, सारे गुण भी रख देने पर ।।२५।। |
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दूजा पलड़ा मंत्र सहित जो, उठा न पाए कोई उसको ।।२६।। |
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उठते चलते सभी क्षणों में, जंगल पर्वत या महलों में ।।२७।। |
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महामंत्र को कभी न छोड़ो, सदा इसी से नाता जोड़ो ।।२८।। |
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देखो! इक सुभौम चक्री था, उसने मन में इसे जपा था ।।२९।। |
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देव मार नहिं पाया उसको, तब छल युक्ति बताई नृप को ।।३०।। |
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उसके चंगुल में फस करके, लिखा मंत्र राजा ने जल में ।।३१।। |
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ज्यों ही उस पर कदम रख दिया, देव की शक्ती प्रगट कर दिया ।।३२।। |
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देव ने उसको मार गिराया, नरक धरा को नृप ने पाया ।।३३।। |
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मंत्र का यह अपमान कथानक, सचमुच ही है हृदय विदारक ।।३४।। |
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भावों से भी न अविनय करना, सदा मंत्र पर श्रद्धा करना ।।३५।। |
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इसके लेखन में भी फल है, हाथ नेत्र हो जाएं सफल है ।।३६।। |
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णमोकार की बैंक खुली है, ज्ञानमती प्रेरणा मिली है ।।३७।। |
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जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर में, मंत्रों का व्यापक संग्रह है ।।३८।। |
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इसकी किरण प्रभा से जग में, फैले सुख शांती जन-जन में ।।३९।। |
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मन-वच-तन से इसे नमन है, महामंत्र का करूं स्मरण मैं ।।४०।। |
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शंभु छंद |
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यह महामंत्र का चालीसा, जो चालिस दिन तक पढ़ते हैं। |
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ॐ अथवा असिआउसा मंत्र, या पूर्ण मंत्र जो जपते हैं।। |
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ॐकार मयी दिव्यध्वनि के, वे इक दिन स्वामी बनते हैं। |
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परमेष्ठी पद को पाकर वे, खुद णमोकारमय बनते हैं ।।१।। |
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पच्चिस सौ बाइस वीर अब्द, आश्विन शुक्ला एकम तिथि में। |
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रच दिया ज्ञानमति गणिनी की, शिष्या ‘‘चन्दनामती’’ मैंने।। |
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मैं भी परमेष्ठी पद पाऊँ, प्रभु कब ऐसा दिन आएगा। |
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जब मेरा मन अन्तर्मन में, रमकर पावन बन जाएगा ।।२।| |