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Karni Chalisa
— दोहा — |
जय गणेश जय गज बदन, करण सुमंगल मूल। |
करहू कृपा निज दास पर, रहहू सदा अनूकूल॥ |
जय जननी जगदीश्वरी, कह कर बारम्बार। |
जगदम्बा करणी सुयश, वरणउ मति अनुसार ॥ |
— चौपाई — |
सूमिरौ जय जगदम्ब भवानी। |
महिमा अकथन जाय बखानी॥ 1॥ |
नमो नमो मेहाई करणी। |
नमो नमो अम्बे दुःख हरणी॥ 2॥ |
आदि शक्ति जगदम्बे माता। |
दुःख को हरणि सुख कि दाता॥ 3॥ |
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। |
तिहूं लोक फैलि उजियारो॥ 4॥ |
जो जेहि रूप से ध्यान लगावे। |
मन वांछित सोई फल पावे॥ 5॥ |
धौलागढ़ में आप विराजो। |
सिंह सवारी सन्मुख साजो॥ 6॥ |
भैरो वीर रहे अगवानी। |
मारे असुर सकल अभिमानी॥ 7॥ |
ग्राम सुआप नाम सुखकारी। |
चारण वंश करणी अवतारी॥ 8॥ |
मुख मण्डल की सुन्दरताई। |
जाकी महिमा कही न जाई॥ 9॥ |
जब भक्तों ने सुमिरण कीन्हा। |
ताही समय अभय करि दीन्हा॥ 10॥ |
साहूकार की करी सहाई। |
डूबत जल में नाव बचाई ॥ 11॥ |
जब कान्हे न कुमति बिचारी। |
केहरि रूप धरयो महतारी॥ 12॥ |
मारयो ताहि एक छन मांई। |
जाकी कथा जगत में छाई॥ 13॥ |
नेड़ी जी शुभ धाम तुम्हारो। |
दर्शन करि मन होय सुखारो॥ 14॥ |
कर सौहै त्रिशूल विशाल। |
गल राजे पुष्प की माला॥ 15॥ |
शेखोजी पर किरपा कीन्ही। |
क्षुधा मिटाय अभय कर दीन्हा॥ 16॥ |
निर्बल होई जब सुमिरन कीन्हा। |
कारज सबि सुलभ कर दीन्हा॥ 17॥ |
देशनोक पावन थल भारी। |
सुन्दर मंदिर की छवि न्यारी॥ 18॥ |
मढ़ में ज्योति जले दिन राती। |
निखरत ही त्रय ताप नशाती॥ 19॥ |
कीन्ही यहाँ तपस्या आकर। |
नाम उजागर सब सुख सागर॥ 20॥ |
जय करणी दुःख हरणी मइया। |
भव सागर से पार करइया॥ 21॥ |
बार बार ध्याऊं जगदम्बा। |
कीजे दया करो न विलम्बा ॥ 22॥ |
धर्मराज नै जब हठ कीन्हा। |
निज सुत को जीवित करि लीन्हा ॥ 23॥ |
ताहि समय मर्याद बनाई। |
तुम पह मम वंशज नहि आई ॥ 24॥ |
मूषक बन मंदिर में रहि है। |
मूषक ते पुनि मानुष तन धरि है ॥ 25॥ |
दिपोजी को दर्शन दीन्हा। |
निज लिला से अवगत कीन्हा॥ 26॥ |
बने भक्त पर कृपा कीन्ही। |
दो नैनन की ज्योति दीन्ही॥ 27॥ |
चरित अमित अति कीन्ह अपारा। |
जाको यश छायो संसारा॥ 28॥ |
भक्त जनन को मात तारती। |
मगन भक्त जन करत आरती॥ 29॥ |
भीड़ पड़ी भक्तों पर जब ही। |
भई सहाय भवानी तब ही॥ 30॥ |
मातु दया अब हम पर कीजै। |
सब अपराध क्षमा कर दीजे॥ 31॥ |
मोको मातु कष्ट अति घेरो। |
तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो॥ 32॥ |
जो नर धरे मात कर ध्यान। |
ताकर सब विधि हो कल्याण॥ 33॥ |
निशि वासर पूजहिं नर-नारी। |
तिनको सदा करहूं रखवारी॥ 34॥ |
भव सागर में नाव हमारी। |
पार करहु करणी महतारी॥ 35॥ |
कंह लगी वर्णऊ कथा तिहारी। |
लिखत लेखनी थकत हमारी॥ 36॥ |
पुत्र जानकर कृपा कीजै। |
सुख सम्पत्ति नव निधि कर दीजै॥ 37॥ |
जो यह पाठ करे हमेशा। |
ताके तन नहि रहे कलेशा॥ 38॥ |
संकट में जो सुमिरन करई। |
उनके ताप मात सब हरई॥ 39॥ |
गुण गाथा गाऊं कर जोरे। |
हरह मात सब संकट मोरे॥ 40॥ |
— दोहा — |
आदि शक्ति अम्बा सुमिर, धरि करणी का ध्यान। |
मन मंदिर में बास करो मैया, दूर करो अज्ञान ।। |