Padam Prabhu Chalisa Lyrics in Hindi
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शीश नवा अर्हंत को सिद्धन करुं प्रणाम | |
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उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम || |
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सर्व साधु और सरस्वती जिन मन्दिर सुखकार | |
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पद्मपुरी के पद्म को मन मन्दिर में धार || |
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जय श्रीपद्मप्रभु गुणधारी, भवि जन को तुम हो हितकारी | |
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देवों के तुम देव कहाओ, पाप भक्त के दूर हटाओ || |
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तुम जग में सर्वज्ञ कहाओ, छट्टे तीर्थंकर कहलाओ | |
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तीन काल तिहुं जग को जानो, सब बातें क्षण में पहचानो || |
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वेष दिगम्बर धारणहारे, तुम से कर्म शत्रु भी हारे | |
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मूर्ति तुम्हारी कितनी सुन्दर, दृष्टि सुखद जमती नासा पर || |
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क्रोध मान मद लोभ भगाया, राग द्वेष का लेश न पाया | |
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वीतराग तुम कहलाते हो, ; सब जग के मन को भाते हो || |
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कौशाम्बी नगरी कहलाए, राजा धारणजी बतलाए | |
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सुन्दरि नाम सुसीमा उनके, जिनके उर से स्वामी जन्मे || |
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कितनी लम्बी उमर कहाई, तीस लाख पूरब बतलाई | |
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इक दिन हाथी बंधा निरख कर, झट आया वैराग उमड़कर || |
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कार्तिक वदी त्रयोदशी भारी, तुमने मुनिपद दीक्षा धारी | |
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सारे राज पाट को तज के, तभी मनोहर वन में पहुंचे || |
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तप कर केवल ज्ञान उपाया, चैत सुदी पूनम कहलाया | |
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एक सौ दस गणधर बतलाए, मुख्य व्रज चामर कहलाए || |
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लाखों मुनि आर्यिका लाखों, श्रावक और श्राविका लाखों | |
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संख्याते तिर्यच बताये, देवी देव गिनत नहीं पाये || |
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फिर सम्मेदशिखर पर जाकर, शिवरमणी को ली परणा कर| |
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पंचम काल महा दुखदाई, जब तुमने महिमा दिखलाई || |
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जयपुर राज ग्राम बाड़ा है, स्टेशन शिवदासपुरा है | |
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मूला नाम जाट का लड़का, घर की नींव खोदने लागा || |
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खोदत-खोदत मूर्ति दिखाई, उसने जनता को बतलाई | |
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चिन्ह कमल लख लोग लुगाई, पद्म प्रभु की मूर्ति बताई || |
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मन में अति हर्षित होते हैं, अपने दिल का मल धोते हैं | |
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तुमने यह अतिशय दिखलाया, भूत प्रेत को दूर भगाया || |
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भूत प्रेत दुःख देते जिसको, चरणों में लेते हो उसको | |
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जब गंधोदक छींटे मारे, भूत प्रेत तब आप बकारे || |
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जपने से जब नाम तुम्हारा, भूत प्रेत वो करे किनारा | |
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ऐसी महिमा बतलाते हैं, अन्धे भी आंखे पाते है || |
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प्रतिमा श्वेत-वर्ण कहलाए, देखत ; ही हिरदय को भाए | |
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ध्यान तुम्हारा जो धरता है, इस भव से वह नर तरता है || |
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अन्धा देखे, गूंगा गावे, लंगड़ा पर्वत पर चढ़ जावे | |
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बहरा सुन-सुन कर खुश होवे, जिस पर कृपा तुम्हारी होवे|| |
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मैं हूं स्वामी दास तुम्हारा, मेरी नैया कर दो पारा | |
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चालीसे को ‘चन्द्र’ बनावे, पद्म प्रभु को शीश नवावे || |
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सोरठाः- नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन | |
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खेय सुगन्ध अपार, पद्मपुरी में आय के || |
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होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो | |
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जिसके नहिं सन्तान, नाम वंश जग में चले || |